ऐसी हूँ मैं
संस्कारों से जुड़ी मगर, खयालो से आजाद हूँ मैं,
चुप रहूँ तो चुप हु, बोलू तो बातो की खान हूँ मैं,
नीम सी कड़वी तो कभी, शहद सी मीठी हूँ मैं
गुजरा हुआ हुआ पल नही, जानेवाला लम्हा हूँ मैं,
कभी गुमशुदा, तो कभी वक्त की तलाश हूँ मैं,
कभी चमकता सितारा तो कभी बुझी हुयी आग हूँ मैं,
तलवार सी तेज़ तो कभी मोम सी कोमल हूँ मैं,
दोस्तों के लिए रोशनी, घने बदलो में बिजली की धार हूँ मैं,
भाइयो की बहन, बहनों का भाई हूँ मैं,
माँ की आँखों का तारा, पिता का अभिमान हूँ मैं,
थोडी सी नादाँ थोडी सी शैतान हूँ मैं,
कवि की कविता तो नही मगर, किसी का ख्वाब हूँ मैं,
परी तो नही दोस्तों, कुछ ऐसी हूँ मैं …
कम शब्दों में कहूँ तो पानी में तेल की बूँद हूँ मैं।
Wednesday, June 25, 2008
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Labels:
Poem
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3 comments:
बेहतरीन कविता, अच्छा लगा आपको हिन्दी मे लिखते देख कर
Well Shailja ji ,nice poem ........
aag ko raakh kahu tu kya sahi hoga?
chingari ko aag kahu to kya sahi hoga?
sochta hoo to ye lagta hai, aap sa koi aur kavi kahi hoga?
Nice poem shailja
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